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खैट पर्वत की नौ परियों की रहस्यमयी लोककथ

खैट पर्वत की नौ परियाँ — रहस्य, लोककथा और आस्था की कहानी

उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले का खैट पर्वत, जिसे ‘परियों का देश’ कहा जाता है, सिर्फ एक पहाड़ नहीं — ये एक जीवंत लोककथा है। हवा में मंत्र, जंगल में सरसराहट, और रातों में परियों की आहट यहाँ आज भी महसूस की जाती है।

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✨ खैट पर्वत — परियों का देश

बहुत पुरानी बात है, जब हिमालय की हवाएँ झूमती थीं और बादलों के झूले गाँवों में सुगंध छोड़ जाते थे, तब इस पर्वत को “परियों का देश” कहा जाता था। गाँववाले मानते थे कि इस पर्वत की हर चोटी पर कोई आत्मा, कोई देवी, कोई आँछरी बसती है।

👑 राजा आशा रावत और उसकी नौ पुत्रियाँ

राजा आशा रावत, जो अपनी दया और धर्म के लिए प्रसिद्ध था, के जीवन में एक कमी थी — संतान नहीं थी। एक दिन माँ गंगा के तट पर तपस्या के बाद उसे वरदान मिला — नौ पुत्रियाँ होंगी।

बड़ी हुईं तो सबने देखा कि उनमें कुछ दिव्य था। वे जंगलों में नाचतीं, नदियों से बातें करतीं। एक दिन उन्होंने पिता से कहा — “हम इस धरती की रक्षा के लिए खैट पर्वत पर रहना चाहती हैं।” और वे चल पड़ीं चाँदनी रात में... और वहीं अदृश्य हो गईं।

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🪶 पर्वत के नियम और आस्था

लोककथाओं के अनुसार, आँछरियाँ पर्वत की रक्षा करती हैं। उनके कुछ नियम हैं —
• लाल या चमकीले कपड़े न पहनना।
• ऊँची आवाज़ में गाना या वाद्ययंत्र न बजाना।
• पर्वत को आदर से देखना, दूध या फूल अर्पित करना।

🎶 जेेतू बग्डवाल और परियों का संगीत

थात गाँव का जेेतू बग्डवाल बांसुरी बजाने में निपुण था। एक रात उसने सोचा — "अगर मैं ऐसा सुर निकालूँ कि परियाँ सुन लें?" और वह चाँदनी रात में बांसुरी बजाने लगा।
धीरे-धीरे जंगल थमा, हवा थमी, और नौ परियों की छाया उतरी। सुना तो सबने उसका संगीत, पर सुबह जेेतू गायब था — बस बांसुरी पड़ी थी। कहते हैं, परियाँ उसे अपने लोक में ले गईं।

“बांसुरी के सुरों में जो खोया, वो लौटकर कभी ना आया।”

🌕 रानी की मुलाकात नौ आँछरियों से

गाँव की भोली लड़की रानी ने परियों से मिलने की ठानी। उसने काले कपड़े पहने, बस पाँव में हल्की घंटी बाँधी। पहाड़ पर चढ़ते हुए जब उसने घंटी हल्की बजाई, तो सामने मंद प्रकाश दिखा — नौ सफेद चूनरियाँ हवा में लहराईं।

परियाँ बोलीं — “रानी बिटिया, तूने नियम निभाए, श्रद्धा लाई, इसलिए तुझे हमारा दर्शन मिला। पर यह स्मृति तुझमें सदा रहेगी।”
जब रानी लौटी, उसके हाथ में फूलों की माला थी — जिसकी खुशबू आज तक गाँव में महसूस होती है।

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😨 भय और लोक विश्वास

कहते हैं जो पर्वत के नियम तोड़ता है — ऊँची आवाज़ में बजाता है या चमकीले कपड़े पहनता है — उसे परियाँ उठा ले जाती हैं। कुछ कहते हैं कि उन्होंने नींद में किसी को पहाड़ की ओर जाते देखा... और फिर वो कभी लौटकर नहीं आया।

बच्चों को आज भी सिखाया जाता है — “पहाड़ पे जाणा है तो मन शांत राखिये।”

💬 भाषा की मिठास — हरियाणवी और राजस्थानी छुअन

रानी की माँ बोली: “बिटिया, ई बात ध्यान राखिये — पहाड़ पे जावे तपे चमकीले कपड़े ना पहनिये, परियाँ रुठ जावेंगी।”

गाँव का बूढा बोला: “ए छोरा, परियों के देश में जाणा है तो मन ख़ामोश राखियो, बोले बिना ही सब समझ जावेंगी।”

🕯️ आधुनिक समय — अब भी जिंदा है ‘परियों का देश’

आज भी पर्यटक जब मुसनकिरी या थात गाँव से ट्रेक करते हैं, तो कहते हैं — वहाँ की हवा अलग लगती है। धुंध में कभी-कभी चाँदनी झिलमिलाती है, जैसे कोई छाया पास से गुजरी हो।

गाँव वाले हर साल पर्वत की पूजा करते हैं — फूल, दूध, चावल, और गुड़ अर्पित करते हैं। मानते हैं कि आँछरियाँ आज भी उनकी रक्षा करती हैं — खेतों की फसल, बच्चों की सेहत, मौसम की कृपा सब उन्हीं से है।

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यह कथा लोकविश्वासों, श्रद्धा और परंपरा का संगम है — खैट पर्वत सिर्फ एक जगह नहीं, एक भावना है।

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